कॉपी किताबो के कारोबार में सरकारी राजस्व को बड़े पैमाने पर चुना लगाया जा रहा है।कारोबारी इनकम टैक्स,वाणिज्यकर विभाग को धता दे रहे। कर की बड़े पैमाने पर चोरी की जा रही है।करोड़ो के कारोबार के बावजूद भी अभिभावकों को पक्के बिल नही दिए जा रहे है ।केवल किताबो में ही नही बल्कि ड्रेस का कारोबार इसमें शामिल है । सरकार को राजस्व की बड़ी क्षति पहुंच रही है ।अभिभावक की जेब पर खुले आम डाक डाला जा रहा है । कारोबारी चांदी काट रहे है।
सीमान्त के आवाज़–शिक्षा का जब नया सत्र शुरू होता है तो विद्यालयों और पुस्तक विक्रेताओं की मिलीभगत से अभिभावकों की जेब पर डाका डाले जाने का अभियान शुरू हो जाता है।पुस्तक स्टेशनरी ही नही बल्कि ड्रेसों की बिक्री में मनमानी कीमतें वसूली जाती है।जिसमे विद्यालयों का कमीशन 50 से 60 प्रतिशत होता है।इस कमीशन के चलते किताबो की गुणवत्ता भी शून्य रहती है।निश्चित दुकान आवंटित होने के कारण दुकानदार की मनमानी के आगे अभिभावक नतमस्तक रहते है।
सबसे आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि जिले में पुस्तको और ड्रेसों का लगभग 100 करोड़ का कारोबार होता है।अभिभावक को पुस्तक विक्रेता न तो पुस्तक न ही ड्रेसों का पक्का बिल देते है । इससे वाणिज्य कर विभाग के राजस्व को चुना लगता है ।बल्कि इतनी ऊंची कीमतों में किताब की बिक्री के बाद इनका लेखा जोखा न होने से आयकर विभाग को भी धता दी जा रही है।यह अचंभा ही नही है कि आखिर सब कुव्ह होने के बावजूद भी संबंधित मौन क्यों साधे रहते है।जबकि अभिभावकों की जेब पर डाक डालने वाले स्कूल व पुस्तक विक्रेताओं के गठजोड़ पर पैनी नजर होनी चाहिए । सामान्य स्कूलों में नर्सरी की किताबो का सेट 1900 रुपये का है।यह सबसे कम धनराशि है । इससे ऊपर की कक्षाओं के लिए अभिभावकों को 10 से 12 हजार रुपये तक चुकाने पढ़ रहे है।शहर के नामी विद्यालयों में एनसीआरटी की पुस्तके नही लगाई गई है प्राइवेट पुस्तको को लगाकर स्कूल और पुस्तक विक्रेताओं का गठजोड़ फलफूल रहा है भले ही इस जनपद में पुस्तक विक्रेताओं की मनमानी को लेकर पूर्व में आंदोलित अभिभावक रहे हो लेकिन वर्तमान में कार्यवाही न होने के कारण गठजोड़ होने के चलते अभिभावकों में भारी आक्रोश रहता है सभी चाहते है की सरकार शिक्षा के क्षेत्र में हो रही भारी लूट को रोकने के लिए कोई ठोस कदम उठाये।जिससे मध्य और गरीब परिवारों के बच्चे बेहतर शिक्षा प्राप्त कर सके ।स्थानीय इस मामले पर पैनी नजर रखने वाले लोगो का कहना है कि स्थानीय अधिकारियों को इस पर संज्ञान लेना चाहिए जिससे अभिभावकों के जेब पर पड़ने वाले डाके को रोका जा सके पुस्तक विक्रेता पुस्तको को खरीदते समय जीएसटी पेड करते है लेकिन प्रिंट रेटो से 90 फीसद तक कम बिल करते है जबकि पुस्तको को अभिभावकों को प्रिंट रेटो में ही बेचा जाता है और बेची जा रही है।