28 मई 2024 ( सीमान्त की आवाज़)
हिमाचल प्रदेश का सिरमौर जिला! ऊंची-नीची पहाड़ियों से घिरे इलाके में ऊपर की तरफ बढ़ें तो एक खास गंध नाक से होते हुए गले में अटकती है. हरे पत्ते-पत्तियों की, चूना पत्थरों की, देवदार की और रिवाजों की. मिली-जुली यही महक वहां की औरतों में भी बसती है. वे औरतें, जो जमीन-घर न बंटने देने के लिए खुद बंट जाती हैं. कई-कई भाइयों के बीच. ये ‘जोड़ीदारां’ प्रथा है, जहां चूल्हा साझा रह सके, इसलिए पत्नी भी साझेदारी में रह जाती है
25 साल पहले बड़े भाई से ब्याह करके गांव आई. देवर तब स्कूल जाता था. बड़ा हुआ तो घरवाले ने कहा – इसे भी अपना लो. मैं बाहर आता-जाता रहता हूं. ये साथ देगा. अब दोनों से ही रिश्ता है. मेरे कमरे में आने की पारी लगा रखी है. एक शाम बड़ा भाई आता है. अगले दिन छोटे का नंबर. ‘तकलीफ नहीं हुई?’ हुई क्यों नहीं. धुकधुकी लगी रहती कि साथ रहने के बाद छोटा घरवाला मुझे छोड़कर दूसरी गांठ न बांध ले! थकी होती तब भी इसी डर से मना नहीं कर पाती थी. लेकिन फिर निभ गई.