11 अप्रैल 2025 ( सीमांत की आवाज ) स्कूली बच्चों की सुरक्षा के लिए भारत में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने स्कूल बसों और निजी वाहनों के लिए सख्त नियम बनाए हैं, लेकिन कई निजी स्कूल इनका खुलेआम उल्लंघन करते हैं। मोटर वाहन अधिनियम और केंद्रीय मोटर वाहन नियमों के तहत स्कूल वाहनों में अनिवार्य सुरक्षा सुविधाएँ जैसे पीली बस, आपातकालीन निकास, सीट बेल्ट, जीपीएस, और प्रशिक्षित चालक होना चाहिए। इसके बावजूद, कई स्कूल अनफिट वाहनों का इस्तेमाल करते हैं, जैसे ओवरलोडेड वैन, बिना परमिट के ऑटो-रिक्शा, या निजी कारें, जो बच्चों की जान को जोखिम में डालते हैं।
दूसरी ओर, कुछ स्कूल प्रबंधन का तर्क है कि अभिभावक सस्ते विकल्पों जैसे ऑटो या निजी वाहनों को चुनते हैं, जिससे नियमों का पालन मुश्किल होता है। फिर भी, बच्चों की सुरक्षा से समझौता नहीं किया जा सकता। सख्त निगरानी, जागरूकता अभियान, और नियमों के कड़ाई से पालन की जरूरत है, ताकि स्कूली वाहन दुर्घटनाओं को रोका जा सके। क्या स्कूलों को सिर्फ मुनाफे के लिए बच्चों की जान खतरे में डालने की छूट मिलनी चाहिए, या फिर अभिभावकों को भी जिम्मेदारी लेनी चाहिए? यह एक ऐसा सवाल है जिस पर बहस की जरूरत है।
खटीमा, उधम सिंह नगर में स्कूली बच्चों को ले जाने वाले वाहनों की स्थिति वाकई चिंताजनक है। स्थानीय लोगों और अभिभावकों की शिकायतों के अनुसार, कई वैन और अन्य निजी वाहन निर्धारित मानकों को पूरी तरह नजरअंदाज कर बच्चों को असुरक्षित तरीके से ढो रहे हैं। इन वाहनों में न केवल ओवरलोडिंग की समस्या आम है, बल्कि कई वाहनों का रजिस्ट्रेशन और फिटनेस सर्टिफिकेट भी समाप्त हो चुका है। इसके बावजूद ये वाहन बिना किसी रोक-टोक के सड़कों पर दौड़ रहे हैं, जो बच्चों की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा है।
परिवहन विभाग और प्रशासन की ओर से इस मामले में ठोस कार्रवाई का अभाव दिखता है। सूत्रों के मुताबिक, कुछ वाहन चालक और मालिक नियमों को ताक पर रखकर बच्चों की जान जोखिम में डाल रहे हैं, लेकिन निगरानी और चेकिंग की कमी के कारण ये गैरकानूनी गतिविधियां बदस्तूर जारी हैं। स्कूल प्रबंधन भी इस ओर ध्यान देने में नाकाम रहा है, क्योंकि कई स्कूल इन वाहनों की स्थिति की जांच किए बिना इन्हें किराए पर लेते हैं।
हालांकि, कुछ समय पहले परिवहन विभाग ने ओवरलोडिंग और अवैध वाहनों के खिलाफ अभियान चलाने की बात कही थी, लेकिन इसका असर खटीमा में न के बराबर दिख रहा है। अभिभावकों का कहना है कि जब तक नियमित चेकिंग, कड़ी कार्रवाई और जागरूकता अभियान नहीं चलाए जाएंगे, तब तक बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करना मुश्किल है।
स्थानीय प्रशासन और परिवहन विभाग को चाहिए कि वह तत्काल इस मामले में हस्तक्षेप करे। वाहनों की फिटनेस, ड्राइवरों की योग्यता, और बैठने की क्षमता की जांच के लिए विशेष अभियान चलाया जाए। साथ ही, स्कूलों को भी निर्देश दिए जाएं कि वे केवल वैध और सुरक्षित वाहनों का ही उपयोग करें। बच्चों की सुरक्षा से बड़ा कोई मुद्दा नहीं हो सकता, और इस पर चुप्पी तोड़कर फौरन कदम उठाने की जरूरत है।