भले ही सरकार जीएसटी गुड्स एंड सर्विस टैक्स लागू कर अपनी पीठ थपथपा रही हो, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। जीएसटी लागू होने के बाद भी दुकानदार टैक्स नहीं चुका रहे हैं। इसका बेहतर उदाहरण इन दिनों बेची जा रही स्टेशनरी का पक्का बिल न देना है। दुकानदार मनमाने दाम वसूल रहे हैं। मगर पक्का बिल देने को किसी भी कीमत पर तैयार नहीं है। वह आम आदमी की जेब पर डाका तो डाल ही रहे हैं साथ ही टैक्स चोरी कर सरकार को भी चूना लगा रहे हैं।
इन दिनों पब्लिक स्कूलो में दाखिले की प्रक्रिया तेजी से चल रही है। ऐसे में जाहिर है कि अगली कक्षा के लिए अभिभावक बच्चों के लिए स्टेशनरी, नोटबुक, किताबें, व यूनिफार्म आदि खरीद रहे हैं। पिछले कई दिनों से किताबें और स्टेशनरी की दुकान पर भीड़ नजर आ रही हैं। कई जगह पर लाइन लगाकर किताबें और स्टेशनरी बेची जा रही है। वाणिज्य कर विभाग के अधिकारियोंकी माने तो किताबें टैक्स फ्री हैं यानी उन पर कोई टैक्स लागू नहीं होता है, लेकिन स्टेशनरी और अन्य सामान पर अलग-अलग टैक्स निर्धारित हैं। नियमानुसार दुकानदारों को स्टेशनरी का पक्का बिल ग्राहक को देना चाहिए। मगर दुकानदार स्टेशनरी का पक्का बिल ग्राहकों को नहीं दे रहे हैं। ऐसे में मनमाने दाम वसूल कर अपनी जेब भर रहे हैं। कई पुस्तक विक्रेताओ की स्थिति यही है। पक्का बिल न देने की एक वजह यह भी है कि कई पब्लिक स्कूलों ने दुकानदारों को किताबें और स्टेशनरी बेचने का ठेका दिया हुआ है। सूत्रों की माने तो बाहर से किताबें और स्टेशनरी का आयात स्कूल द्वारा होता है। सिरदर्द से बचने के लिए अनेक स्कूलों ने कमीशन बेस पर किताबें और स्टेशनरी बेचने का ठेका दुकानदारों को दिया हुआ है। यही वजह है कि दुकानदार पक्का बिल नहीं दे रहे हैं। कई स्कूल तो अपने यहां से किताबें और स्टेशनरी बेच रहे हैं। स्टेशनरी में अलग-अलग आइटम पर 12 से 18 फ़ीसदी तक टैक्स निर्धारित है।